विश्वास ही धोखा है
विश्वास ही धोखा है
खुद के साये से भी डरने लगे है, हम
बहुत धोखा खाये हुए, शख्स है, हम
जिनको मानते थे, हम अपना सगा
उन्होने ही जमकर दिया, हमें दगा
एक खिलखिलाती हुई सी हंसी में,
एक छिपे हुए से, दुःख, दर्द है, हम
जिनसे थी, हमको उम्मीद बेहद
उन्होंने ही आंखों से बहाया नद
गैर नही, अपनों ने की, आंखे नम
मुफ़लिसी में दिया, हमको ज़ख्म
हम ढूंढते रहे, बाहर ओर मरहम
मरहम तो न मिला, मर गये हम
कातिल शहर में, अकेले रहे, हम
जो प्रकाश से मिटाने चले थे, तम
विश्वास धोखा है, आज के दौर में
विश्वास ही मौका है, आज के दौर में
जिन पर करते, खुद से
ज्यादा यकीं,
उन्होंने ही जिंदगी में ठोकर ऐसी दी
पीठ में छुरा घोपकर निकाला, दम
तब से खा ली साखी ने भी कसम
खुद सिवा, ओर बालाजी के अलावा
किसी पर भी नही करेंगे, यकीन हम
किसी पर यकीं करना, गलत है, कदम
आज के दौर में सबके सब है, बेअदब
सही किताबें करवाती, लक्ष्य ओर गमन
जो पढ़े ढंग से जमीं से पहुंचाती गगन
इंसानों से भले, जानवर है, विश्वासपात्र
जो किसी का खा, दुम हिला, करते नमन
पशुओं से बढ़कर न, कोई मित्र अनुपम
कृतघ्नता ही, साखी वो तो है, एक कलम
बेजुबान प्राणी दगा न देते है, खुदा कसम
वो, मनु से ज्यादा भरोसेमंद है, यकीनन।