करा दो वैतरणी पार
करा दो वैतरणी पार
बसती मानवता जहां, जीवन निर्भय जान,
मानवमात्र की पहचान, दया धर्म का मान !
सुंदरतम काया हो भले, हृदय में हो वैरभाव,
दुष्ट कतरनी नित चले, पर हिय करती घाव !
ऐसे मानव से भला कहीं सांकल बंधा स्वान,
अपने स्वामी का रखे, जीवन प्राण का ध्यान !
निर्मल मानव से झरे, ज्यों मानवता का मेह,
वाणी मीठी सी सोम सी, मधुप कुसुम सा नेह !
दीन- हीन को देखते, पूछन हाल जो जाय,
सो नर देव समान है, जो परहित हो सुखाए !
सार्थक जीवन हुआ, जो दुःखियों से करे प्यार,
सेवादान से करा देते, बुजुर्गों को वैतरणी पार !