मन मोहन
मन मोहन
ऐसे मूक प्यार का भेद सजन
बिन तुम्हरे कहा ना जाए
यादों के निर्मल घाव सजन
बिन तुम्हरे किसे दिखाए
बैठी हूं तृप्ति मिले मुझको
जो मनमोहन दरस दिखाए
आ जाओ थाम लो मुझको
आखों के अश्क बुलाए
एक दर्द सा उठता है दिल में
कौन इसका मरहम लाए
एक प्यास सी उठती है मन में
वो बांसुरी मधुर सुनाए।