एक तरफा मोहब्बत
एक तरफा मोहब्बत
बेपरवाह थी जिंदगी ना था कोई गम
थे अकेले न डर था करेगा कोई सितम
इन इश्क की गलियों से गुजरते न थे
हर पल बस जीते थे मरते न थे
एक दिन रब ने हम पर भी गौर फरमा दिया
छिप रहे थे जिससे उसी से मिलवा दिया
सोचा ना इश्क इस कदर उनसे हो जाएगा
चैन और सुकून पल भर में को जाएगा
अब तो जीते है ना मरते है हम
बस उसी की याद में आहें भरते हैं हम
वो है इतना जालिम न है उसको खबर
जी पाते काश हम भी उसे भूल कर
जाने क्यों ये रोग हमको मिला
एक तरफा मोहब्बत थी किससे करते गिला।