शीर्षक आप बताओ
शीर्षक आप बताओ
(ये कविता एक रंग के ऊपर है, जिसका नाम कविता में इस्तेमाल नहीं हुआ है. कविता के अंत में आपको उस रंग का नाम बताना है.)
तुममें क्या मिलाऊँ?
तुममें जो भी मिलता है
तुम्हारा रंग उसी के जैसा दिखता है
जैसे कोई पूछे, ख़ुदा क्या है?
और पूछते-पूछते वो ख़ुद ख़ुदा सा दिखता है
तुममें क्या मिलाऊँ?
तुममें जो भी मिलता है
तुम्हारा रंग उसी के जैसा दिखता है
जैसे कोई हसीन चेहरा
मुस्कुराए तो दिल बहलता है
तुम्हारा रंग किसी ख़ूबसूरत के होंठों से मिले
तो तुम्हारा रंग उसी के जैसा दिखता है
तुममें क्या मिलाऊँ?
तुममें जो भी मिलता है
तुम्हारा रंग उसी के जैसा दिखता है
तुम्हें क्या कहूँ?
तुम्हें क्या नाम दूँ?
तुम तो किसी छोटी सी बच्ची की मुस्कराहट हो
और बारिश आने से पहले इंद्रधनुष की आहट हो
तुम्हारा एहसास दिल में अमन पैदा करता है
जन्नत भी तुम्हारे ही रंग की होगी, ऐसा लगता है
तुम्हें ख़ुदा ने सबसे पहले बनाया है, तुम ख़ास हो
तभी तो तुम सभी पैग़म्बरों, सभी मसीहों का लिबास हो
तुममें क्या मिलाऊँ?
तुममें जो भी मिलता है
तुम्हारा रंग उसी के जैसा दिखता है
भले ही लोग जीवन भर पहनें कितने रंग
मगर आख़िरी दिन मिलता है सबको एक ही रंग
मुल्ला की टोपी तुम हो
पण्डित की धोती तुम हो
दौलतमन्द की शान हो तुम
नेताओं की पहचान हो तुम
वैसे तो कोई कितना भी खा ले चटर पटर
लौट के एक दिन आता है, आख़िर तुम्हारे घर
तुम्हारे ही रंग की चीज़ें खाकर, सब होते हैं तन्दुरुस्त
वो कहते हैं ना, देर आए, मगर आए दुरुस्त
आँखों की ख़ूबसूरती में तुम्हारा बड़ा हाथ है
तुमसे उल्टा रंग तुम्हारे बिलकुल साथ है
तुम न हो तो ये आँख इतनी ख़ूबसूरत नहीं होती
फिर भी तुम्हारा नाम लेने की ज़रुरत नहीं होती
कहाँ से सीखा है, तुमने इतना प्यारा ढ़ंग
ज़रा बताओ, कैसे बना इतना प्यारा रंग