न कर
न कर
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न कर, क्यूँ किसी को इतनी दुआ देता है
सहारा इंसान को कमज़ोर बना देता है
मंज़िले तो वहीं हैं चलना तुझे ही होगा
घर से निकलेगा जो मंज़िल को भी पा लेता है
अकड़ तो ऐसी कि जैसे पहाड़ हो जाए
सारे एहसान ये इंसान भुला देता है
देख इंसान यहाँ कितना होशियार हुआ
अपने मतलब का वो ख़ुदा भी बना लेता है
कर ले चाहे कोई कितनी भी भागदौड़ यहाँ
जिसको चाहेगा वो इक पल में उठा लेता है