STORYMIRROR

Qais Jaunpuri

Comedy

3  

Qais Jaunpuri

Comedy

कुछ सर-फिरे

कुछ सर-फिरे

2 mins
28.3K


मुल्क को पहली दफ़ा

इक ऐसा हुक्मरान मिला है

जो अवाम की ज़ुबान पे भी

पहरा बिठाना चाहता है

जो अवाम की आवाज़ को भी

दबाना चाहता है

मुल्क को पहली दफ़ा

इक ऐसा हुक्मरान मिला है

जो ज़मीनो-आसमान पे भी

अपना कब्ज़ा चाहता है

 

जो चाहता है कि सूरज

उसकी मर्ज़ी से चले

उसकी मर्ज़ी से ढले

और उसकी मर्ज़ी ना हो

तो ना भी निकले

 
जो चिड़ियों को हुक्म देता है

सुबह न चहकने को

जो चाँद को धमकाता है

दिन में चाँदनी बिखेरने को

जो चाहता है

कि बहती हवा का रुख़ मोड़ दे

और जिधर चाहे

उधर छोड़ दे

 
जिसने कुछ अन्धी आँधियों को पाल रखा है

उन सरफ़िरों के लिए

जो तूफ़ान की तरह उसके ख़िलाफ़ बहते हैं

कुछ सर-फिरे

जो उसके ख़िलाफ़ क़लम से लड़ते हैं

 
इस पागल हुक्मरान को

शायद ये मालूम नहीं

कि ये सर-फिरे तूफ़ान

इन किराये की आँधियों से नहीं डरते

अगर डरते

तो एक के बाद एक शहीद क्यूँ होते

 
ये सर-फिरे तो सर के फ़िरे हैं

ये अपनी बात कहने को ही बने हैं

ये अपनी बात कहेंगे

और ये चुप न रहेंगे

भले ही कितने पहरे बिठा दो

चाहे कितनी ही तेज़ आँधियाँ चला दो

 

तुम्हारी हुकूमत तो बस कुछ दिन की है

मगर इन सरफ़िरों की आवाज़

गूँजती रहेगी हवाओं में

 
तुम इसका रुख़ जिधर को मोड़ोगे

ये आवाज़ उधर ही बहती चली जाएगी

और अपनी बात कहती चली जाएगी

फिर भले ही तुम्हारी हुकूमत डगमगाए

या फिर कोई ज़लज़ला आए

जो तुम्हारी खड़ी की हुई

इन मज़हबी दीवारों को बहा ले जाए

 
तुम तो अपनी फ़िक्र करो

तारीख़ तुम्हारा नाम भी न लेगी

और ये कुछ सर-फिरे

जिनको तुम डराते हो

इनकी शोहरत तो रुकने का नाम न लेगी

 
तुम जिन्हें मौत की सज़ा सुनाते हो

अस्ल में वो सच्चे हैं

ये बताते हो

और उन्हें तुम दुनिया से इसलिए मिटाते हो

क्यूँकि तुम घबराते हो

कि तुम्हारी बनाई हुई

इन मज़हबी दीवारों का क्या होगा?

 
मगर इतना याद रखो

आने वाली पीढ़ी का अन्दाज़ जुदा होगा

जो न समझेगी इस मज़हबी दीवार को

जो न मानेगी इस मज़हबी तकरार को

शम्मा ये अब जल चुकी है

और अकेले अँधेरों में निकल चुकी है

 
ये तुम्हारे बुझाने से न बुझेगी

और इसकी लौ तुम्हारे फूँक मारने से और बढ़ेगी

और एक दिन ऐसा आएगा

कि इसकी आँच से

तुम्हारा नकली चेहरा जल जाएगा

और तब आवाम को

दिखेगी तुम्हारी असली सूरत

जिसकी है आवाम को

अब सख़्त ज़रूरत

 
अब तुम्हारे ‘अच्छे दिन’ के वादे

झूठे कहे जाएँगे

और अस्ल में अच्छे दिन

कुछ सर-फिरे ही लाएँगे


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy