Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

क़सम से, वो सच है

क़सम से, वो सच है

2 mins
1.2K


 


जैसे सूरज मिलाओ

तो बनता है दिन 
जैसे चाँद पिघलाओ

तो बनती है रात 
जैसे धूप खिलखिलाए

तो खिलते हैं फूल 
जैसे हवा ले अँगड़ाई

तो चलती है लहर 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे जम्हाई लेती

किसी छोटी सी बच्ची की मुस्कुराहट
जैसे ताज़ा-ताज़ा पैदा हुए

गाय के बछड़े की

आँखों की चमक 
जैसे सुबह की ओस में

भीगी हुई कली 
जैसे सर्दी के मौसम की हो दोपहर 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे घनी अँधेरी

रात का जुगनूँ 
जैसे तपते रेगिस्तान का मजनूँ 
जैसे क़िस्सों कहानियों की तड़प 
जैसे किसी फ़क़ीर की पुकार का असर 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे दिल धड़के

तो रगों में ख़ून बहे 
जैसे किसी नमाज़ी का दुआ में हाथ बढ़े
जैसे बरतनों में हो

चम्मच की खनक 
जैसे भूख लगे

तो आँखों को

बस रोटी आए नज़र 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे सुबह सवेरे

मस्जिद की अज़ान 
जैसे बाज़ारों में सजें

इक साथ दूकान 
जैसे बरसों की कमाई से बने कोई मकान 
जैसे किसी नवजात

बच्चे पे पड़ी हो पहली नज़र 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे हरी पत्‍तियों को देख

आँखों की रौशनी बढ़े 
जैसे दीवार पे चींटी

अपना खाना लेके चढ़े 
जैसे पहाड़ के सीने से

फूटे कोई नदी 
जैसे झरने का पानी

बिखर जाए इधर उधर 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे माँ की दुआओं से बरकत मिले 
जैसे कड़ी मेहनत से

किसी को शोहरत मिले 
जैसे पतझड़ के ठीक बाद

एक नया फूल खिले 
जैसे पत्थर तोड़ने वाला मज़दूर

न छोड़े कोई कसर 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे बिन मंज़िल का

हो कोई मुसाफ़िर 
जैसे मरने वाले की कोई ख़्वाहिश

बची रह गई हो आख़िर 
जैसे हाथ की पहुँच से दूर

पैर में गड़ा काँटा 
जैसे राह भटका हो कोई

और ख़त्म ना हो सफ़र 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

जैसे रिश्तों की भीड़ में

खो जाए क़दर
जैसे जेब हो ख़ाली

और अनजान शहर 
जैसे पाँव थके

और लम्बी डगर 
जैसे किसी भिखारी की

हलवाई की दूकान पे हो नज़र 
कुछ इस तरह से ढूँढ़ती है 
तुम्हें 
मेरी नज़र 

तुम इसे किसी शायर का 
ख़याल न समझना 
ये जो कुछ भी मैंने 
अभी तुमसे कहा 
क़सम से, वो सच है

 

 

 


Rate this content
Log in