गाँव हमारा बदल रहा है
गाँव हमारा बदल रहा है
नन्ही नन्ही किरणें लेकर, सुख का सूरज निकल रहा है ।
तोड़ पुरानी सभी बेड़ियाँ, गाँव हमारा बदल रहा है ।।
हर घर में शौचालय लेकर, आई है पुरवाई सी ।
खुशहाली चौखट पर आकर, बैठी है पहुनाई सी ।
रोगों की बुनियाद शौक से, यह परिवर्तन निगल रहा है...
तोड़ पुरानी.........।।
गिल्ली-डण्डा और कबड्डी, खाना और पढ़ाई भी ।
अब दिखती है हर बच्चे में, सपनों की अँगड़ाई भी ।
आज गर्व से गाँव- गाँव में, कल का भारत टहल रहा है ...
तोड़ पुरानी...........।।
हर लड़की अपने बूते, आज स्वयं चल निकली है ।
जरा सहारा पाकर उसने, चाल समय की बदली है ।
अब दहेज लाचारी वाला, पर्वत खुद ही पिघल रहा है...
तोड़ पुरानी........।।
आज युवा हाथों में कल की, बागडोर दे बैठे हैं ।
भारत के सपनों के सागर, में हिलोर दे बैठे हैं ।
अब कौशल विकास के बल पर, दुख का दानव दहल रहा है....
तोड़ पुरानी............।।
