STORYMIRROR

Phool Singh

Drama Tragedy Classics

4  

Phool Singh

Drama Tragedy Classics

मेरी माँ

मेरी माँ

1 min
333

कौन कहता है माँ, एक इंसान भर ही होती है 

पूछ लो जाके उस खुदा से, वही संसार औलाद का होती है।


हर बच्चा उसकी आँख का तारा, अपाहिज हो चाहे गूँगा, बहरा 

रिश्तों के इस स्वार्थी जग में, निस्वार्थ अकेली माँ ही होती है।


कष्ट, संकट को धूल चटाती, विपत्ति का है वही सहारा  

तरक्की होती उसी के कारण, बोझ वही फिर माँ होती है।


वृद्ध अवस्था जब आ जाती, कभी-कोई बच्चा ही निकले न्यारा  

उसकी धन-दौलत में हिस्सा सबका, पर, घर से पराई माँ होती है|| 


देर सवेरे बाँट जोहती, वृद्ध आश्रम में माँ रोती है 

दुआएँ देती माँ औलाद विकास की, क्योंकि माँ तो फिर भी माँ होती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama