संगदिल
संगदिल
सोचा था इश्क़ का ये सुरूर न छोड़ेंगे
फ़ना हो जाए फिर भी ये फितूर न छोड़ेंगे
भीड़ में तू हमें ना पहचाने तो ग़म नहीं
हम तुझे चाहते रहने का ये गुरूर ना छोड़ेंगे
किस संगदिल से हम दिल को लगाए बैठे है
वो खोये है खुद में हम खुद को भुलाए बैठे है
राह जाती है गुजर कर दिल की नज़रों से कहीं
वो आँखें बंद किये दिल को छुपाए बैठे है
ज़ुल्फ़ों से खेलती उन उंगलियों के क्या कहने
वो दांतो से दुपट्टा दबाए बैठे है
हाले दिल का हमारे उन्हें परवाह नहीं
दिल की लगी को दिल्लगी बनाए बैठे है
नाम आता है तेरा लबों पर इबादत की तरह
रगों में मेरी तू समाया है मेरी आदत की तरह
अब तो शामिल है तू मेरी हर दुआओं में
ज़िक्र भी हो जाए कही होती है बगावत की तरह
माँगने से कभी मोहब्बत नहीं मिलती
चाह कितनी भी गहरी चाहत नहीं मिलती
तुझे चाहना है तो तन्हाई में चाहेंगे
ये वो जगह है जहां नाकामी नहीं मिलती