बदलता वक्त
बदलता वक्त
रोजगार का पता नहीं
युवाओं में है रोष भरा
शिक्षा का ना मोल रहा, चापलूसों का दौर बढ़ा।।
बदल गया ये जग भी देखो
नए मुकाम रोज खोज रहा
वक़्त के संग गहरे होते रिश्ते, तकनीकी का प्रभाव बढ़ा।।
मेहनत बुद्धि से काम ना होता
झूठ मक्कारी का चलन बढ़ा
ईमानदार रहे खड़ा देखता, मौज उड़ाता दुष्ट बड़ा।।
मुंह पर राम बगल में छुरी
इंसा एक-दूजे को मार रहा
पूछने वाला कोई ना उससे, ना धन शक्ति का रुतबा बढ़ा।।
पढ़ा-लिखा अब अनपढ़ होता
धनी होता समझदार बढ़ा
पैनी तक को मोहताज है वो, ना रोजगार का पता चला।।
निर्भर हो गया मशीन पर जाने
हो गया रिश्तों से दूर बड़ा
एकांत सा हो गया सबका जीवन, ना प्रेम-भाव भी मन में रहा।।
