खत भाग -२
खत भाग -२
कुछ खत किताब में पड़े फूल की तरह सूखते रहते हैं
तो कुछ ख़तों को ताज़ा लहू से सना देखे हैं
बेशक ग़लत तरीक़ा है स्वयं को बर्बाद करने का
जो कद्र करते स्वयं की व प्रेम की वो ज़िंदगी बर्बाद नहीं होने देते हैं
खत लिखे तो आज के जमाने में भी जाते हैं
पर अन्दाज़ बदल गया इंटनेट के आने से
अब खत पहुँच जाते फुर्र से
नयी पीढ़ी कबूतर द्वारा खत देने का सब्र ही नहीं कर पाते हैं
समयानुसार सब बदलता है इस धरा पर
पर अपने समय में जो जीवन जी चुके होते हैं
उससे बेहतर वर्तमान का कोई सुख नहीं जँचता है
इसलिए बीते दशक के लोगों का दिल खत में बसता है।