जिंदगी...फिल्म नहीं
जिंदगी...फिल्म नहीं
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दुनिया की भीड़ में
तलाशती हैं आँखें
कभी अंधेरों में सपने,तो
कभी अपनों में अपने
ज़िन्दगी नेपथ्य में
मरते दम तक...
हमारे किरदारों को
जीवंत रखती है...
हम अभिनेता की तरह
पहन लेते हैं….
रोज़ नए मुखोटे
हाँ हँसते रोते कुढ़ते
क्रोध छल भी ढोते !
बस निभाना ज़िन्दगी में
हर किरदार है ज़रूरी
बिना नायक खलनायक
जैसे हर फिल्म है अधूरी;
वक्त भी करवट बदलता है...
जाने किस रफ़्तार से चलता है !
जिंदगी हकीकत है फिल्म नहीं..
यहाँ पल-पल किरदार बदलता है !