रुखसत
रुखसत
जब मंज़िल से सुहावना सफर लगने लगा,
तो निराशा और हताशा से रुखसत ले ली।
जब उम्मीदों का कारवां बढ़ता चला गया और मंज़िलों से फासला घटता गया,
तो शिकवों –शिकायतों से रुखसत ले ली।
जब सपनों और उनको हर दम जीने की अहमियत समझ आने लगी,
तो मायूसी को वक़्त की करवट मात्र समझ, उस से रुखसत ले ली।
इम्तिहान तो जन्म से प्रारम्भ हो कर जीवन पर्यंत चलता है,
जब ये तथ्य समझ आ गया तो संघर्ष से प्रेम कर आराम से रुखसत ले ली।
बिखरे हुए मोतियों को पिरो के लड़ी में तब्दील करना सीख लिया जब से,
तो हर हार पर टूटने और बिखरने से रुखसत ले ली।
दिल-ए-मकां की सोहबत की जुस्तजू हुई जब से,
रिश्तों में शिकायतें करने से रुखसत ले ली।
हर रुखसत से मिल जाता है जीवन को एक नया रुख,
हर बार एक नए पहलू की तलाश में, थमने से रुखसत ले ली।