कोई देखता नहीं।
कोई देखता नहीं।
अच्छे बुरे इंसान की परख दुनिया में लिबास है
रूह की अच्छाई को देखता कोई नहीं।
खुदगर्जी के हाथों कतल हुआ इंसानियत का
कातिल की तमाशाई को , कोई देखता नहीं।
दूसरों को आइना दिखाने में मसरूफ है दुनियां
चेहरे की सफाई को , कोई देखता नहीं।
रूखे हैं रिश्ते इस कदर की बस नामे वफ़ा है
रिश्तों की रहनुमाई को, कोई देखता नहीं।
फरेब की दुनियां में दिखाबे भर का प्यार है
जरुरत में शनासाई को कोई देखता नहीं। ।
गलियारों की रौनकें भी अब घर में सिमट गयी
पडोसी की आशनाई को कोई देखता नहीं।
मनोज वफ़ा बांटते रहो बदले जफ़ा के
खुद की बेवफाई को कोई देखता नहीं।