STORYMIRROR

Dr Reshma Bansode

Abstract Drama Others

4  

Dr Reshma Bansode

Abstract Drama Others

दीपोत्सव

दीपोत्सव

1 min
347

दीपोत्सव आ गया,

हर साल की तरह ...

सभी घरों में चहल पहल शुरू हो गई,

हर साल की तरह ...

रंगोली सजने लगी दरवाजों में,

दीप जलने लगे फिर से,

हर साल की तरह....

मैंने दरवाजा बंद लिया,

खिड़की भी बंद कर ली,

हर साल की तरह...

अब दीवाली नहीं आती मेरे घर....

कुछ साल पहले उसने आना छोड़ दिया,

बंद खिड़की से मैं छुप कर झांकती हूं ,

हर साल की तरह...

देखती रहती हूँ खुशियों को खिलते हुए अजनबी चेहरों पर,

फुलझड़ी और अनार के सुनहरे बौछार में खिलखिलाते बच्चे,

और उनके पीछे उनको संभालते उनके माता पिता,

हर साल की तरह ....

जानती हूं अब नहीं आयेगी ये कभी मेरे घर,

मैं भी आने नहीं देती उसे ....

हर साल की तरह...

खिड़की दरवाजा बंद कर देती हूं मैं भी,

हर साल की तरह....



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract