लड़की हो तुम..!
लड़की हो तुम..!
हर दुःख से तुम लड़ती हो,
ख़ुद से ही अक्सर डरती हो।
चुप रह सदा बस,दर्द सहा करती हो।
एक मुस्कान के बदले कितने,
आँसू क़ुर्बान किया करती हो।
क्योंकि,लड़की हो तुम !
तुम में न विकार है,
सपनों से बस प्यार है।
आज़ादी के नाम पे,
ग़ुलामी मिला अधिकार है।
क्योंकि,लड़की हो तुम !
तुझमें जी तें तुझसे ही बनते,
पुनः तुझी से धरती पे आते।
तुझसे ही सीखते बोली भाषा,
तुम्हें ही गालियां भी सुनाते।
हर कमी में खुद के,
बस तुझको ही धिक्कारते जाते।
क्योंकि,लड़की हो तुम !
