STORYMIRROR

Abhishek Singh

Abstract

3  

Abhishek Singh

Abstract

लड़की हो तुम..!

लड़की हो तुम..!

1 min
318

हर दुःख से तुम लड़ती हो,

ख़ुद से ही अक्सर डरती हो।

चुप रह सदा बस,दर्द सहा करती हो।

एक मुस्कान के बदले कितने,

आँसू क़ुर्बान किया करती हो।

क्योंकि,लड़की हो तुम !


तुम में न विकार है,

सपनों से बस प्यार है।

आज़ादी के नाम पे,

ग़ुलामी मिला अधिकार है।

क्योंकि,लड़की हो तुम !


तुझमें जी तें तुझसे ही बनते,

पुनः तुझी से धरती पे आते।

तुझसे ही सीखते बोली भाषा,

तुम्हें ही गालियां भी सुनाते।

हर कमी में खुद के,

बस तुझको ही धिक्कारते जाते।

क्योंकि,लड़की हो तुम !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract