सम्भल रे मनवा
सम्भल रे मनवा
पल-पल जोड़े गुच्छियां, मन में पाले जनजाल
नित नवीन रंजीशे लिए, फिर भी बने सज्जन
षड्यंत्र मन में भरा रहे, फिर भी शुद्धता का ढोंग
अपने को सच्चा माने, है सब दिखावे की चलन
सामने शुभचिंतक बने, पाछे बुने खोट पे खोट
ऐसे जनों से सावधान, दे अपनों को गहरी चोट
हर घड़ी स्वांग रच गए, मूढ़ दूजे को समझते ये
सतर्क रहें ऐसे दुष्टों से, न मिले कभी स्वप्न में भी।