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Raj sharma

Others

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Raj sharma

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जिंदगी तेरे कितने रुप

जिंदगी तेरे कितने रुप

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दारुण दावानल सी प्रचण्ड

बर्फ की परत सी शीतल

सांझ की स्याह सी तिमिर

ऐ ! जिंदगी कितने रूप तेरे ।


है हवा के झोंके सी मनोरम

लोहे के कण से भी कठोर

पुष्पों के पराग सी कोमलता

ऐ ! जिंदगी कितने रूप तेरे ।


बहते जल सी धारा प्रवाह लिए

सागर सी असीम विस्तार लिए

गंगा सी पवित्र पावनता धरे

ऐ ! जिंदगी कितने रूप तेरे ।


माँ जैसी निस्वार्थ ममता जताए

कभी शत्रु सी रंजिशें निभाए

पहेलियों की गुच्छियों में उलझाए

ऐ ! जिंदगी तेरे कितने रूप ।





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