जिंदगी तेरे कितने रुप
जिंदगी तेरे कितने रुप
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दारुण दावानल सी प्रचण्ड
बर्फ की परत सी शीतल
सांझ की स्याह सी तिमिर
ऐ ! जिंदगी कितने रूप तेरे ।
है हवा के झोंके सी मनोरम
लोहे के कण से भी कठोर
पुष्पों के पराग सी कोमलता
ऐ ! जिंदगी कितने रूप तेरे ।
बहते जल सी धारा प्रवाह लिए
सागर सी असीम विस्तार लिए
गंगा सी पवित्र पावनता धरे
ऐ ! जिंदगी कितने रूप तेरे ।
माँ जैसी निस्वार्थ ममता जताए
कभी शत्रु सी रंजिशें निभाए
पहेलियों की गुच्छियों में उलझाए
ऐ ! जिंदगी तेरे कितने रूप ।
