ये मुस्कुराने की आदत
ये मुस्कुराने की आदत
हम खामोश थे
तुम भी खामोश थे
ये मुस्कुराने की आदत सी
क्या हो गई
हवा का रुख अब
ये क्या हो गया
वो शर्मोहया
अब अदा हो गई
वो बेख़बर ऐ सौंदर्य
वो मासूम ऐ बगुल
वो लूटा के चमन
गुलिस्तां हो गई
तेरी सख्त ऐ अदा
तेरी बेरुख बयां
क्या कहूँ के अब
जिगर ऐ फिदा हो गई
वो पतझड़ बसंत
वो राग ऐ रिदम
वो मासूमियत मेरी
न जाने कहाँ खो गई
तुम जो आधुनिक हुए
तुम जो निखर गये
तो क्या तुम्हारी वो
अंदाज ऐ अदा भी
दरबदर,
यहाँ-वहाँ हो गई ?
तेरी तीर ऐ नजर
मेरा कातिल जिगर
तेरी पलटने की अदा
रुखसार ऐ खतावार हो गई
मेरी मोहब्बत ऐ मासूम
हरफे खफ़ा,
हर दफ़ा तुझ पर
निशार हो गई।