हाथों में चोट गुलाब की लगी है
हाथों में चोट गुलाब की लगी है
मैंने किस राह को मुड़कर नहीं देखा
न जाने किस राह की बद्दुआ लगी है।
क्या वो शख्स गुजरा था यहां से,
जो इस रास्ते इतनी ट्रैफिक लगी है।
जतन, तपस्या, माफ़ी, ख़ुदा से बक्शीश भी मांगी,
ये आग तो ख़ामोखा लगी है।
ये बागान सारे जो भरे हैं फूलों से वो क्या जानें,
मेरे हाथों में चोट गुलाब की लगी है।
उस परिंदे के लौट आने की अब उम्मीद नहीं है,
दिमाग है कि मानता नहीं और दिल को दिल की लगी है।
अब जमाने से थोड़ा रूबरू हो जाऊं तमन्ना है,
अच्छा ये बताओ सिनेमा में
कौन सी फ़िल्म लगी है।
पर वो शख्स भुलाए नहीं भूलता है, न जाने
उसे हिचकियाँ कितनी बार लगी है।