जिस रोज
जिस रोज
जिस रोज तुम गए थे ..... मुझे छोड़ कर।
दो शब्द भी हिस्से न आयें मेरे।
कुछ तो कहा.....होता कुछ बोल कर।।
जिस रोज तुम गए थे मुझे छोड़ कर।।
इंतजार को छोड़ा था मैंने जिस मोड़ पर।
दिल को तोड़ा था तूने दिल से जोड़ कर।
मैं फरियादें कहां करता रब से कुछ बोल कर।
जिस रोज तुम गए थे मुझे छोड़ कर।।
ना जाते हुए देखा नज़र भर कर।
मैं देखता ही रहा...खामोशी से उस मोड़ तक।
आज सोचता हूँ....क्यों रोका नहीं उसे अपनी कसम बोल कर।
जब कि वो चला गया मेरी जिंदगी से बिना कुछ बोल कर।।