"ये दुनिया।"
"ये दुनिया।"
ईश्वर ने तो सुंदर और अद्भुत बनाई थी दुनिया,
मगर मानव ने मिलकर बिगाड़ दी ये दुनिया।
लालच और नफरत से चलती है ए दुनिया,
झूठ को जीत और सच को पराजित करती है ये दुनिया।
चंद सिक्कों के खातिर अपनो के बीच लड़ाई करवाती है ये दुनिया,
भाइयों को भी दुश्मन बनाती है ये दुनिया।
सब चीज में मिलावट करती है ये दुनिया,
झूठे को सच में पलटती है ये दुनिया।
कितने रंग बदलती है ये दुनिया,
अपनो को भी पराया बना देती है ये दुनिया।
कमजोर लोगों पे हुक्म चलाती है ये दुनिया,
और धनिकों को झूठ में भी साथ देती है ये दुनिया।
नस नस में नफरत का जहर भरती है ये दुनिया,
अपनो को भी आपस में लड़ाती है ये दुनिया।
पता नहीं कब बदलेंगे लोग और कब बदलेगी दुनिया?
हमें तो पैसे से धनिक, और नैतिक मूल्यों से दरिद्र लगती है ये दुनिया।
