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Meenaz Vasaya. "મૌસમી"

Classics Inspirational

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Meenaz Vasaya. "મૌસમી"

Classics Inspirational

मैं हूँ आज की नारी

मैं हूँ आज की नारी

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मैं आज की नारी, नहीं हूं बेचारी.

मैं एक अकेली सब पे पड़ जाऊंगी भारी।

मैं सीता बनकर अग्निपरीक्षा कभी नहीं दूंगी,

मैं तो ईंट का जवाब पत्थर से दूंगी।


हां अगर आप मुझे देगे पूरा सहकार,

तो में भी तुम्हारे जीवनको दूंगी सुंदर आकार ।

अगर तुम दोगे मेरा साथ, तो मैं तुम्हारी जिंदगी को बना दूंगी बाग,

यदि तुमने छेड़ा मुझे गलत तरीके से, तो तुम्हें भस्म कर दूंगी में बन के आग।


मैं द्रौपदी बन के खुद को दांव पर नहीं लगाऊंगी,

इसका सामना करने के लिए मैं झाँसी की रानी की तरह झुनून को जगाऊँगी!

मैं गांधारी बनकर अपनी आंखों पर पट्

टी नहीं बांधूंगी,

हाँ, स्वप्नद्रष्टा बनकर मैं अवश्य तुम्हारा साथ दूंगी।


मैं न तो लाचार हूं और ना ही कमजोर,

तोड़ दूंगी अब में तो पुरानी जंजीर।

चार दीवारी छोड़ के घूमूंगी आसमान में,

मैं स्वयं दुर्गा बनकर अपने आपकी रक्षा करूंगी।'

मैं एक माँ बनकर प्यार करूंगी, मैं एक पत्नी के रूप में भी प्यार बरसाऊंगी।


अगर जरूरत पड़ी तो मैं रणचंडी बनकर, नराधमों को सबक भी सिखाऊंगी।

किरण बेदी बनकर मैं अपराधियों को सजा दूंगी,

मैं हिमालय की चोटी पर तिरंगा भी लहेराऊंगी।

में आज की नारी,नही हु में कोई बेचारी,

एक अकेली सब पर पड़ जाऊंगी भारी।


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