रिश्ते का लिहाज़
रिश्ते का लिहाज़
एक अजब सी खुमारी में, वो उस दिन मुझे चूम बैठा, इस नशे की बीमारी में, वो रिश्ता भी भूल बैठा।
मैं सकपका सी गई थी, उसका ये साहस देख, वो मतवाला सा झूम कर, मेरे गालों को सूंघ बैठा।
मेरी होगी बहुत रुसवाई, ये सोच कर मैं चुप रही, वो पलक झपकते ही, मेरी नजरों से दूर बैठा।
मैंने आँख ना मिलाई, उसके बाद उससे कभी, उस शोर भरी रात में, वो मेरी हँसी तोड़ बैठा।
बात कुछ भी नहीं थी पहले, सब एकदम अचानक हुआ, वो हवा के झोंके जैसा, मेरा घरौंदा तोड़ बैठा।
इस तरह के शोषण अक्सर, महफिलों में हुआ करते हैं, जब महिलायें घुलती - मिलती हैं, और पुरुष दंभ भरते हैं।
ऐसे पुरुषों की नीयत को, पहले भाँप उनपर वार करो, जब वो हौले से तुम्हें चूमे, तब कसकर दो चार हाथ करो।
मैं रिश्ते का लिहाज़ कर, कुछ बोल ना पाई महफिल में, पर आज भी ये दिल जलता है, जब नाम कोई लेता उसका जीवन में।।
