तुम नहीं रहोगे तो...
तुम नहीं रहोगे तो...
कुदाल फावड़े को छोड़
विचारों का कलम लाया हूँ
खेती छोड़....
समंदर में सवालों का सैलाब लाया हूँ
देख हालत मिटटी की
फूल उजर गए,बाग़ उजर गए..
फसलों में पैदावार बढ़ गए
जनसंख्या में परिवार बढ़ गए
पर मुट्ठीभर अनाज के लिए
बाँझ किया है तुमने इसे..
तुम नहीं रहोगे तो,तुम्हारी पुश्ते देखेगी
भू-त्रासद आएगी इक दिन
भूख की सुनामी आएगी इक दिन
तुम नहीं रहोगे तो,तुम्हारी पुश्तें देखेंगी..
देख हालत वनो की
जमीं बिछड़ गए,फलक बिछड़ गए
काटने वालों के हाथ बढ़ गए
मारने वालों के औजार बढ़ गए
खड़ा था जो चट्टान पेड़ बनकर
कटान किया है तुमने इसे..
तुम नहीं रहोगे तो,तुम्हारी पुश्तें देखेंगी
भू त्रासद आएगी इक दिन
विभीषिका में डूबोगे इक दिन
तुम नहीं रहोगे तो,तुम्हारी पुश्तें देखेंगी
देख हालत हवाओं की
मंजर बदल गए,खंजर बदल गए
युद्धों में हथियार बढ़ गए
उद्योगों में विस्तार बढ़ गए
खड़ा था जो सांसों का तूफ़ान बन कर
दूषित किया है तुमने इसे..
तुम नहीं रहोगे तो,तुम्हारी पुश्ते देखेगी
भू त्रासद आएगी इक दिन
तड़प कर मर जाओगे इक दिन
तुम नहीं रहोगे तो,तुम्हारी पुश्तें देखेंगी
देख हालत धरती की
पल-पल बदल गए,कण-कण बदल गए
तुम्हारी जरूरतें बदल गईं
या फिर तुम्हारी सोच बदल गई
पांचो तत्व को बदल दिया तुमने यूंही
भू त्रासद आएगी इक दिन..
मानव !! मंजर को बेहद करीब से देखोगे इक दिन..
तुम नहीं रहोगे तो, तुम्हारी पुश्तें देखेंगी...
