मेरे खून से तुम्हारी शराब आएगी
मेरे खून से तुम्हारी शराब आएगी
लत के बाज़ार में
रोज दरी बिछाए ताश खेलते हो
कस पर कस लगाते हुए
रोज घर को नशे में बेचते हो..
रोज गिरते पड़ते तुम देर आते हो
रोज धुले धूसरे कपड़े ले आते हो
आते आते पड़ोसियों को गाली गलौज दे जाते हो
खुद को तुम बाज़ार में सरेआम बेच आते हो ..
कैसे बाज आओगे तुम ?
और कैसे समझाउं तुम्हे?
ये घर रोज लूट रही है...
दुकानदार साहूकार था
और तुम कर्जदार थे..
गाय भैस सहित चारे तक उठा कर ले गए
खेतों से रोज बोझे उठाकर लाती हूँ
दूसरों के घरों में रोज काम कर आती हूँ
खीज उठती है मुझे..
जब पूछते हो खाना खायी
भूख की याद तुम मत दिलाया करो
दो दिन से डीबिये में तेल तक नहीं है..
जो था वो तुम ले गए
कुछ बचा था वो साहूकार ले गए..
तुम्हे देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है
वैसे भी मेरी जान किस काम की
तुम्हारे काम आएगी तो..रखलो बेशक
मेरे खून से तुम्हारी शराब आ जाएगी।
