मान लिया
मान लिया
तेरे हर झूठ को इक बार फिर हमने सच मान लिया
अपने ही कलेजे पर इक बार फिर पत्त्थर रख लिया
तेरे आंख के पानी को इक बार फिर हमने गंगा मान लिया
उसे हाथ में लेकर तुझे इक बार फिर अपना समझ लिया
तेरे हर स्वांग को इक बार फिर हमने असल मान लिया
यही है हकीकत ज़िन्दगी की अब ये हमने जान लिया
तेरे मिलने को इक बार फिर हमने अपना मुकद्दर मान लिया
अपने से ही ज़िन्दगी में इक बार फिर समझौता कर लिया।