रूठने का सिलसिला
रूठने का सिलसिला
रूठने का सिलसिला ख़ुदा ने मुकद्दर में कुछ ऐसा लिखा
लाख कोशिशों के बाद भी वो मुझ पर कभी राजी न हुआ
हर शाम बस इक ही उम्मीद पर मेरा सूरज ढला कि देखूॅं
मुस्कान अपने रूख-ए-महताब पर पर ऐसा कभी न हुआ
खुद को आईने में देखकर खूब रोया मैं आज रात
कितना बदल गया था मैं फिर भी वो सितमगर मेरा न हुआ
न जाने ख़ुदा ने मुझे क्यों बनाया लाख कमियों के साथ
फिर भी दुनिया में कभी कोई इक शख्स तेरा न हुआ।।