कहां कोई दिवाना हैं
कहां कोई दिवाना हैं
जानता हूं कि अब ईमेल व्हाट्सप्प का ज़माना है,
अब कागज़ के ख़त का कहां कोई दिवाना है !
सब अपने काज में व्यस्त झूमता हुआ कहां नजारा है,
बस एक रोटी की भूख मिटाने में सब अबारा है !
खुशियां अव्वल दिखने का कहां नजारा है,
आदर सम्मान का क्यों मिटता पिटारा है !
जानता हूं ईमेल व्हाट्सप्प का ज़माना है,
पर ख़ुशियों का कौन नहीं दिवाना है !
अवसरों की तलाश में हम त्योहार मानते है,
छोटी छोटी खुशियां से हम ज़िंदगी संवार जाते है !
छोटे बच्चे हमारे जीवन के चांद है,
सच कहूं तो वही असल मुस्कान है !
हम तो कागज़ के ख़त पर लट्टू हो जाते थे,
ये ईमेल व्हाट्सप्प पर तो हम निखट्टू हो जाते हैं !
