भू-काल
भू-काल
एक नावकार..
आज ही नौका विहार से लौटा है..
सबसे पहले देखता है वो
समंदर में फैला रेत
और वो तैरकर लौटा है ..
रास्ते में जो भी मिलता..बतलाता..समझाता.
की कैसे डूबता सूरज रातों को लौटा है..
महसूस किया उसने
की किनारे की गहराई
बीच के दलदल से कही अधिक थे..
जैसे आज ही नदी सूखा हो
फिर रेंगती बाजुओं से..वो ..
एक सफर पर लौटा है..
कभी शिद्दत से आर-पार
जाया करता था उसके घर..नदी पार
कभी किनारे पर,
रेत से बनाया करता था घर.. माटी पर
आज उसकी आँख भी सुख गए
इस नदी की पानी की तरह...
