लौट आ वसंत..
लौट आ वसंत..
खलिस अगर जुबां के
चुप होने से होती..
तो लहज़ा मेरा ,
खामोश लब्ज़ों में ना बदलता..
सब कहते हैं की वसंत आ गया..
तो फिर पतझड़ मुझसे नहीं बिछड़ता..
कभी कोम्पल की सरसरहाट से,
मेरे फूल का पता चलता
मेरा सावन कुछ इस तरह भीग रहा होता..
मेरे प्यार को हाय लगाती
उसकी पाबंदियां..
फिर मेरी हमनशी मुझसे दूर ना होती ..
वसंत अगर अगले साल लौट आये
तो बताना उसे, कितना तड़पा हूँ..तुम बिन
मेरा गार्डन की लहलहाती पतियाँ
इस वसंत ने तोड़े हैं..
जिसे सींचा था मैंने संयोग से
फिर कोई माली को
इस तरह का दुःख ना होता..

