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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Tragedy

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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Tragedy

पतझड़

पतझड़

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खोने को कुछ रहा नहीं

जब पतझड़ बन जाता जीवन।


तिनका तिनका बिखर गया

जब समूळ उखड़ गया हो मन।


अपना ही कंटक चुभने पर

जीते जी मर जाये सुमन।


रक्षक ही भक्षक बन जाये

माली से भी सिहरे चमन।


साहित्याला गुण द्या
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