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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Abstract Fantasy Others

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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Abstract Fantasy Others

"कभी कभी तन्हाई"

"कभी कभी तन्हाई"

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कभी कभी तन्हाई

आ ही जाती है भीतर

बिना दस्तक दिये,

यूँ ही चुपचाप

मन के अधखुले द्वार से।

और बांध लेती है

मुझे, विचारों की

असंख्य लताओं से।

और फ़िर

विचारों में उलझी मैं,

निकलने की छटपटाहट में

और उलझती जाती।

फिर अचानक

विचारों की जकड़न से

मन,

भाव की कड़ियों को

निकाल कर

शब्दों में पिरोकर

रचता है कोई कविता।

और फिर

विचारों की लताओं पर

कविताओं के पुष्प लगते हैं

और उनकी खुशबू भी

आती है भीतर,

तन्हाई के साथ

मन के

अधखुले द्वार से।

इसीलिए

मुझे पसंद है,

कभी कभी तन्हाई भी!



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