"प्राकृतिक सौंदर्य"
"प्राकृतिक सौंदर्य"
बिखरी हुई कविता की तरह
सादगी बिखर रही है।
बनावटी शृंगार में,
खोई जा रही है।
कैसे कोई लिखे
उस सुंदरता को,
जिसमें अपना
कुछ है ही नहीं?.
क्यों कि
कविताओं में ही तो,
तादृश होता है
प्राकृतिक सौंदर्य।
