शाम की उदासी
शाम की उदासी
शाम की उदासी में!
वक़्त नहीं गुज़रता।
अर्थहीन! दुनिया लगती है ,
दर्द कम नहीं होता।
मैं खुश! हूं मगर,
ख्वाब! नहीं देखा कबसे।
क्यों आज भी मुझे!
तुम अपने! दिल में झांक न सके।
वो जो प्राणों में बसा था,
तुम्हारा ज़िक्र ऐसा है।
बिछड़कर ऐसा लगता है,
मेरे बस में नहीं था।
दिल से रंजिशें! न गई,
हमारा क्या ?
लम्हा लम्हा समेटते हैं !
आज भी शाम गुज़र जाएगी।