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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Abstract Fantasy Others

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Rupal Sanghavi "ઋજુ"

Abstract Fantasy Others

शाम की उदासी

शाम की उदासी

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शाम की उदासी में!

वक़्त नहीं गुज़रता।

अर्थहीन! दुनिया लगती है ,

दर्द कम नहीं होता।

मैं खुश! हूं मगर,

ख्वाब! नहीं देखा कबसे।

क्यों आज भी मुझे!

तुम अपने! दिल में झांक न सके।

वो जो प्राणों में बसा था,

तुम्हारा ज़िक्र ऐसा है।

बिछड़कर ऐसा लगता है,

मेरे बस में नहीं था।

दिल से रंजिशें! न गई,

हमारा क्या ?

लम्हा लम्हा समेटते हैं !

आज भी शाम गुज़र जाएगी।

  



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