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D.N. Jha

Tragedy Inspirational

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D.N. Jha

Tragedy Inspirational

मजदूर

मजदूर

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दिन रात पसीना बहाता है,

फिर भी वो भूखा सोता है।

घर में  बच्चे भूखे-प्यासे,

जाने क्यों दिन रात रोता है।


धूल -धूसरित वो रहता है,

जी तोड़ परिश्रम करता है।

पेट की चिन्ता उसे सताती,

छल- प्रपंच में न रहता है।


जगत का पेट वो भरता,

अन्नदाता सबका कहलाता।

भोजन करता आधी पेट वो,

किसके लिए है अन्न बचाता।


जेठ की तपती दुपहरी में,

पूस  की  ठिठुरती ठंड में।

जब सभी घर में दुबके होते,

उस वक्त भी वो रहता खेत में।


कहीं भी वो सम्मान न पाता,

हेय दृष्टि से है वो देखा जाता।

इतनी तकलीफें होने पर भी,

मजदूर अपनी मौज में जीता।



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