किसान
किसान
दिन रात पसीना बहता है,
फिर भी वो भूखा सोता है।
घर में बच्चे भूखे प्यासे,
जाने दिनभर क्यूं रोता है।
अपनी मर्जी कब चलती है।
गैरों की हुकूमत सहता है।*
अपना तो पता मालूम नहीं,*
औरों का ठिकाना रखता है।*
अपनी तो है अब फिकर कहाॅं।
औरों की फिक्र वो करता है।
फसलों को उगाता है वही।
अन्नदाता वही होता है।
अतिवृष्टि सहे अनावृष्टि सहे,
चुपके चुपके ही रोता है।
दुनियां भी बहुत सताती उसे,
कभी कुछ नहीं वो कहता है।
आंखों में लगे समंदर भरा।
चुपचाप खड़े ही पीता है।
दो गज की जमीं नसीब नहीं,
कोने में पड़ा ही रहता है।
