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D.N. Jha

Abstract Classics

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D.N. Jha

Abstract Classics

चारधाम (कुंडलियां)

चारधाम (कुंडलियां)

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सबका मालिक एक है, अलग अलग हैं नाम।

पूरब पश्चिम  संग में, उत्तर  दक्षिण धाम।।


उत्तर दक्षिण धाम, वास है उनका कण-कण।

सौंप दिया है डोर, ध्यान में रखते प्रति छण।।


उनके हाथ लगाम, थमाया  मैंने कब का।

अलग अलग है रूप, एक हैं मालिक सबका।।


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