चारधाम (कुंडलियां)
चारधाम (कुंडलियां)
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सबका मालिक एक है, अलग अलग हैं नाम।
पूरब पश्चिम संग में, उत्तर दक्षिण धाम।।
उत्तर दक्षिण धाम, वास है उनका कण-कण।
सौंप दिया है डोर, ध्यान में रखते प्रति छण।।
उनके हाथ लगाम, थमाया मैंने कब का।
अलग अलग है रूप, एक हैं मालिक सबका।।