परी
परी
आखों में एक परी थी ,
पर मुरझाई हुई वो कली थी,
रंग उसका सांवला था ,
आखें सूरज सी तेज थी ,
गुलाबी होठों पे खडा एक सवाल था,
एक पिज रेमें आजादी कैद थी ,
खुले आसमान में उड़ना सपना था ,
जीम्मदारी में कैद पूरी दुनिया थी ,
हर कागज का टुकड़ा एक नोट था,
भागती थी वो उन टुकड़ो के पीछे ,
जैसे मानो कई सारा कर्ज था,
बस इक छाव को तरसती थी आखें ,
सूरज की बरसात थी तब ,
सवाल मत पुछो इक राज था,
खुशी के लिबास के नीचे रखा था ,
उदासी में लिपटा उसका हर वो हिस्सा था ,
अपनो के सपनों को पूरा कर रही थी ,
खुद के सपनों की रद्दी थी वो,
बस कलम अपनी थी उसकी ,
उसे कुछ राज़ लिख लेती थी ,
कुछ कविता और कहानियाँ,
कलम ही अब उसकी दवा थी ,
और ज़िंदा होने का सबूत ,
सभी का अच्छा करना था ,
वो भी उसका एक फ़र्ज़ था ,
एहसान फरामोश है ये दुनिया ,
फिर भी अच्छाई के साथ रिश्ता था ,
पुराने गमो को कब्र मे दफनाया था,
और खुद की आखों ने आज पूछा था ,
पराई होके क्या दर्द था ?
