इश्क
इश्क
उसने देखा और नाप लिया की हम कमजोर हे ,
थोड़ा सा हररोज वार करना और तोड़ना,
जेसे मानो हम उसकी शराब का इक नशा हो,
सागरों से गहरा यकीन था उन पर ,
फ़रिश्ता मानते थे हम उस चाँद को,
चांदनी भर देगा वो अंधेरी जगह मे,
लेकिन उस चाँद पर भी ग्रहण था !
उन हाथो को चूमते थे मेरे लब्स,
उन्जान थी धड़कन उस हाथो के चाबुक से,
मार खाके भी मुस्कुराती थी वो दर्द से ,
शीशे की तरह टूटते हुए हरपल हर एक लम्हे से,
इस शरीर को तो जला भी दे अगर ,
घर जलता हे तो सिर्फ राख बचती हे ,
जीया हुआ हरा लम्हा यादे नही जलती ,
खुदाभी कुछ एसा करता की ,
उन यादो का पन्ना रात में ही मीटा देता ,
नींद मेरी खुली आखों से चुराकर न जाता वो,
और थोड़ा सा सुकून मेरे सीने में छोड़ देता।
