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Arun Gode

Tragedy

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Arun Gode

Tragedy

किनारा

किनारा

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जीवन जीते-जीते लगातार हर बार,

दिल के टुकड़े हुये बार-बार हजार।

जीवन में नई मुसीबतों का पहाड़ टूटने पर,

ढूंढे हर पल, हर तरफ किनारे हजार।


दिल टूट –टूट के बना महासागर का किनारा,

किधर भी नहीं मिला मुझे तिनके का सहारा।

लेकिन मुसीबतों का बढ़ता ही गया अंबार,

किसी का कहीं नहीं मिला कोई किनारा।


अपनों के घाव से भरी दिल की गागर,

पीड़ा की बुंदों से अथांग भर गया सागर।

अपनों के दर्द ने सहने की सीमा की पार,

फिर भी जख्मी दिल क्यों करता सभी से प्यार। 


जिन से लगी थी उम्मीदें हजार,

बताते थे वो कभी वादों का अंबार।

हर हमदर्द में नजर आया था किनारा,

लेकिन नजरे मिली तो दूर से किया किनारा।


कभी कोई रहते थे मेरे लिए बेकरार, 

मुसीबत में मिलने से किया था इनकार।

सभी प्रयास हो रहे एकदम बेकार, 

माननी पड़ी मुझे तकदीर से फिर हार।


क्या अपना, क्या पराया, ऐसा लगने लगा,

शायद अपनों की फितरत हैं देना सिर्फ दगा।

फिर भी अपनों की चाहत में क्यों डुबने लगा ?,

लेकिन अंतिम किनारा उनसे भी कोसों दूर लगा।


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