ए ज़िंदगी तू मेरा हिसाब कर दे
ए ज़िंदगी तू मेरा हिसाब कर दे
तुझ से हार गया ए मेरी ज़िंदगी
तू अब मेरा हिसाब कर दे।
परेशां करूँ तुझको पल पल मेरा मकसद नहीं,
तू किसी और का है, मेरे माथे का मुकद्दर नहीं।
अब सहन नहीं होता तेरी जुदाई का गम,
इश्क में हारे आशिक़ को सज़ा इनाम कर दे ।।
तुझ से हार गया ए मेरी ज़िंदगी,
तू अब मेरा हिसाब कर दे।
तुझ को चाहना, चाहते रहना तो मेरी आदत है,
ये जो फितरत है मेरी, ये हश्र ए सोहबत है ।
गर बेवफाई दस्तूर है पाक मुहब्बत का,
दिल तोड़ कर मेरा, ये पूरा रिवाज़ कर दे ।।
तुझ से हार गया ए मेरी ज़िंदगी,
तू अब मेरा हिसाब कर दे ।
कुरेदेंगी ज़ख़्म मेरे दुनिया की ज़ालिम निगाहें,
जला दे तू मुझे, या ज़मींदोज़ कर दे ।
ना तन्हा छोड़ कर जा मेरे बेज़ान जिस्म को,
फ़लक इक कफ़न का इंतज़ाम कर दे ।।
तुझ से हार गया ए मेरी ज़िंदगी
तू अब मेरा हिसाब कर दे ।
तुझ से हार गया ए मेरी ज़िंदगी
तू अब मेरा हिसाब कर दे ।।