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Sunil Kumar

Tragedy

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Sunil Kumar

Tragedy

मजदूर

मजदूर

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वक्त और हालात से मजबूर है

कितना बेबस मजदूर है।


दो जून की रोटी के खातिर

सदा रहता अपनों से दूर है

कितना बेबस मजदूर है।


अपनों की खुशियों के खातिर 

सब कुछ करने को मजबूर है 

कितना बेबस मजदूर है।


दिन-रात करता ये मेहनत 

पर मिलता न फल अनुकूल है

कितना बेबस मजदूर है।


कुदरत के कहर के आगे

पलायन को मजबूर है

भूखा-प्यासा दिन-रात चल रहा 

मंजिल न जाने कितनी दूर है

कितना बेबस मजदूर है।


सूनी आंखों में 

सजाए थे जो सपने 

अचानक हुए चूर-चूर हैं

कितना बेबस मजदूर है।



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