साहब मैं मजदूर हूँ...
साहब मैं मजदूर हूँ...
साहब मैं मज़दूर हूँ
साहब मैं मज़दूर हूँ
मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ।
शहर के शहर बनाता हूँ मैं
मगर दुनिया के किसी कोने में
अपना आशियाना नहीं बना पाता हूँ
क्योंकि
साहब मैं मज़दूर हूँ
मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ।
दुनिया में सभी का सम्मान है
आदर और सत्कार है
बस पता नहीं क्यों उस सम्मान
का स्थान बनाने वालों को ही
सम्मान नहीं दिला पाता हूँ
क्योंकि शायद मैं ही भूल गया कि
साहब
मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ।
>श्रम दिवस पर श्रम का सम्मान कर
मान ली हमने अपने कर्तव्यों
से इतिश्री
आगे पूरे वर्ष वही मानसिक टूटन
ग़रीबी और भुखमरी में
जीने को विवश हूँ
क्योंकि शायद मैं ही भूल गया कि
साहब
मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ।
मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ।