पाँच बरस पहले!
पाँच बरस पहले!
नवम्बर १० की शाम का धुँधलका ही था,
जब मैंने आपकी साँसों को शरीर का साथ छोड़ते देखा!
नवम्बर ११ की दोपहार ही तो थी,
जब सब अपनों ने आपके शरीर को भी शून्य में विलीन होते देखा!
लगता है ,
जैसे कल की ही बात है!
लेकिन ये हैं सब जीवन के विचित्र सत्य?
किसी कल हम भी ऐसी कथा जियेंगे,
और एक बार फिर
उस पार फिर मिलेगें॥
…….. शायद ऐसा होता हो॥
