मन की ड्योढ़ी पर छिछलन है
मन की ड्योढ़ी पर छिछलन है
मन की देहरी पर मैल जम रही है,
आँखों के किनारे पर भी जलकण है !
अंतस छिन्न विदिर्ण सा हुआ जा रहा,
हृदय के किनारे पर बहुत छिछलन है !
निरापद नहीं रही इस दहर मानवता,
चारों तरफ विस्तृत करूण क्रन्दन है !
हवा , पानी , मिट्टी हुई अब कलुषित,
कुछ ऐसा ही प्रदूषित हुआ पर्यावरण है !
शुद्धता, स्वछता का महापर्व दीपोत्सव,
इस दिन लक्ष्मी के स्वागत का प्रचलन है !
मन की देहरी पर जो उजास कर जाए,
ऐसी दीवापली मनाएं, यही सार्थक शगन है !
