वो अपने लिए पक्षपात करती है
वो अपने लिए पक्षपात करती है
स्त्री उम्र भर अपना अस्तित्व तलाशती है,
कभी मायका कभी ससुराल अपनाती है !
क्या उसका अपना खुद का कोई घर नहीं,
मायके से विदा होते हुए वो यही सोचती है !
भटकती ही रहती है बंजारों की मानिंद,
कर्तव्य अधिकार का खाता बांचती रहती है !
एक स्त्री जीवनपथ के संघर्ष सतत सहती है,
फिर भी अपने लिए वक़्त नहीं जुगाड़ पाती है !
बच्चों के झगड़े सदा निष्पक्ष होकर निपटाती है,
फिर भी खुद के पक्ष में कभी आवाज़ नहीं उठाती है !
