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V. Aaradhyaa

Tragedy

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V. Aaradhyaa

Tragedy

वो अपने लिए पक्षपात करती है

वो अपने लिए पक्षपात करती है

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स्त्री उम्र भर अपना अस्तित्व तलाशती है,

कभी मायका कभी ससुराल अपनाती है !


क्या उसका अपना खुद का कोई घर नहीं,

मायके से विदा होते हुए वो यही सोचती है !


भटकती ही रहती है बंजारों की मानिंद,

कर्तव्य अधिकार का खाता बांचती रहती है !


एक स्त्री जीवनपथ के संघर्ष सतत सहती है,

फिर भी अपने लिए वक़्त नहीं जुगाड़ पाती है !


बच्चों के झगड़े सदा निष्पक्ष होकर निपटाती है,

फिर भी खुद के पक्ष में कभी आवाज़ नहीं उठाती है !



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