"पैसा ही सबकुछ हो गया।"
"पैसा ही सबकुछ हो गया।"
धन की चाहत में मानव बेईमान हो गया,
कर्तव्य को छोड़कर वो बेईमान हो गया।
अधिक से अधिक धन पाने की चाह में,
वो सच्ची राह छोड़कर बेईमान हो गया।
लालच की नदी में इतना डूबा की,
तैर पाना भी अब तो मुश्किल हो गया।
अब नहीं रहे परिवार,अब बिखर गया परिवार,
अब तो धन के लिए परिवार भी गौण हो गया।
चंद सिक्के और कागज के टुकड़ों के लिए,
मानव, मानों मानव से मशीन हो गया।
भाग रहे है सब बेतहाशा धन के पीछे,
आज चैन ,सुकून, आनंद सब सपना हो गया।
अब रिश्तों नातो का नही है कोई मोल,
मानो पैसा ही सब कुछ हो गया।
